भारत में विजयादशमी प्रमुख त्योहारों में से एक है। मगर इस पर्व के भी विविध रंग हैं
कर्नाटक में दशहरे के दिन आयुध पूजा की जाती हैं जिसमें किसी देवी
ओडीशा में दशहरा दो तरीके से मनाया जाता है। यहां के सारे शक्ति
तेलुगु घरों में विजयादशमी का काफी महत्व है। जीवन से जुड़ी हर चीज
मदिकेरी दशहरा का इतिहास लगभग सौ साल पुराना है। यहां का दशहरा बिल्कुल अलग होता हैं। विजयादशमी की रात यहां के दस मंदिरों से दस रथयात्रा निकाली जाती है। विजयादशमी की रात रावण
महाराष्ट्र में विजयादशमी के दिन लोग एक दूसरे के घर जाकर बधाई देते हैं और मिठाई बांटते हैं। इस दिन लोग आपता पेड़ की पूजा कर उसके सुनहरे पत्ते आपस में बांटते हैं। यह पत्ता सोने
नेपाल में विजयादशमी का बहुत महत्व है। इस दिन को नेपाल में दर्शन कहा जाता है। एक समय में इस दिन नेपाल के राजा लोगों के माथे पर तिलक लगाकर विजयादशमी की बधाई देते थे। आज भी यह मान्यता है कि बड़े अपने से छोटे के माथे पर तिलक लगाकर उन्हें इस दिन की बधाई देते हैं।
केरल में विजयादशमी को शिक्षा की शुरुआत का दिन माना जाता है। नवरात्र के आठवें दिन छात्र अपनी किताबें और किसान, जो अलग-अलग राज्यों में अपनी परम्पराओं में दिखते हैं। दशहरे की सतरंगी धूम से कई राज्य रंग जाते हैं। लोग भगवान राम की अच्छाइयों को याद कर बुराइयों के खत्म होने की कामना करते हैं। देश भर में पुतलों का दहन इसी भावना का प्रतीक है। कहीं रामलीला का मंचन, तो कहीं भव्य पंडालों में मां दुर्गा की प्रतिमा का स्थापना, तो कहीं नौ देवियों के अलग-अलग रूपों की पूजा। हर समुदाय की अपनी परम्परा। उत्तराखंड के कुमांऊ में तो दशहरे का अनोखा रूप ही दिखता है। इस तरह विजयादशमी को देश भर में अलग-अलग रूपों में मनते देखना देश और विदेश के पर्यटकों के लिए एक अनोखा अनुभव है।-देवता की पूजा नहीं होती बल्कि किताबें, गाड़ियां और रसोई के सामान की पूजा की जाती है। महाराष्ट्र में भी कहीं-कहीं ऐसी पूजा होती है। पढ़ने-लिखने वाले लोग अपनी किताबें, कलम और कम्प्यूटर की पूजा करते हैं, वहीं किसान अपने खेतों में इस्तेमाल आने वाले औजार की पूजा करते हैं। बड़ी-बड़ी फैक्टरियों में मशीनों की पूजा होती है, तो ट्रांसपोर्ट में काम करने वाले अपनी बसों, कारों और ट्रकों की पूजा करते हैं। इन्हें फूलों से सजाकर पूजा की जाती है और लोग आने वाले सालों में तरक्की की कामना करते हैं।-पीठ में दस दिन तक मां दुर्गा की पूजा-अर्जना की जाती है और पूरे शहर में मां दुर्गा की यात्रा निकाली जाती है। इन दिनों की जाने वाली पूजा को लोग अपराजिता पूजा कहते हैं। पूजा के बाद नम आंखों से मां दुर्गा को विदाई दी जाती है। प्रतिमा विसर्जन के बाद विजयादशमी मनाई जाती है, जिसे ‘रावण पोडी‘ कहा जाता है। जिसमें रावण के पुतले का दहन किया जाता है। तेलंगाना में विजयादशमी के दिन लोग साहसिक कार्य करने की शुरुआत करते हैं। लोगों का मानना हैं कि इस दिन से अच्छे काम की शुरुआत हमेशा सफल होती है। लोग इस दिन नए कपड़े पहनते हैं। मां दुर्गा के मंदिर जाकर पूजा-अर्जना करते हैं।, चाहे वह बिजनेस हो, नया घर खरीदना या नई गाड़ी हरेक की शुरुआत विजयादशमी से की जाती हैं। इस दिन लोग नई चीजों की पूजा कर उसे पवित्र करते हैं। शाम में लोग रामायण के पात्रों के अनुसार वस्त्र पहन कर स्टेज शो का आयोजन करते हैं। विजयादशमी के दिन यहां रावण और कुंभकर्ण के पुतले जलाए जाते हैं, जो भगवान राम की विजयगाथा को दर्शाते हैं। नवरात्र के दौरान विजयवाड़ा में कृष्णा नदी के किनारे बेहद पुराना मंदिर ‘श्री दुर्गा मल्लेश्वर स्वामी‘ के पास दशहरा नवरात्री मनाई जाती है। हजारों श्रद्धालु इस दौरान दर्शन करने आते हैं। विजयादशमी के दिन ‘टेप्पा उत्सवम‘ मनाया जाता है जिसमंे दुर्गा की प्रतिमा को बड़ी सी नाव पर स्थापित कर फूलों और रौशनी से सजाया जाता है। आंध्र प्रदेश के लोग इस प्रतिमा के दर्शन कर नया काम शुरू करते हैं।, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं। यहां के लोग भी इस दिन अपनी नई गाड़ियों, मशीनों, किताबों, औजारों और शस्त्रों की पूजा कर भगवान से आशीर्वाद मांगते हैं।(गोल्ड) का प्रतीक होता है और एक दूसरे के सुनहरे भविष्य की कामना करता हैं। यह सुनहरा पत्ता बांटने की परंपरा भगवान राम और कुबेर के पूर्वजों से चली आ रही है।-मजदूर अपने औजार मां दुर्गा के चरणों में पूजा के लिए रखते हैं और विजयादशमी के दिन इसे उठाते हैं। केरल में जो लोग हिंदू नहीं हैं, वे भी इस परंपरा को निभाते हैं। 2004 से कई गिरजाघरों मंे भी इस परम्परा को अपनाया है और दशहरे के दिन शिक्षा देने की शुरुआत की है। दशहरा नवरात्र के त्योहार का समापन माना जाता है। इस दिन मां दुर्गा की प्रतिमा को विसर्जित कर आने वाले समय में सुख-शांति की कामना की जाती है।
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