Sunday, 20 November 2011

जवाबदेही का दौर


जवाबदेह और चुस्त प्रशासन ही सुशासन के मानक बनते हैं। इस दृष्टि से हिमाचल प्रदेश में जनता को एक नया मंच मिला है जो लोकतांत्रिक व्यवस्था का इच्छाशक्ति से दिया हुआ आधुनिक औजार भी है। तय समय सीमा में लोकसेवा को सुनिश्चित करने वाला मंत्रिमंडल की ओर से स्वीकृतिप्राप्त नियम से एक नई व्यवस्था बनेगी जो जनता को राहत देगी और समय प्रबंधन का आनंद भी। यह और बात है कि अभी इसमें 11 विभाग लिए गए हैं जिनके 27 महत्वपूर्ण काम इसमें दर्ज किए गए हैं। यह व्यवस्था समय की मांग इसलिए थी क्योंकि सुशासन की मांग के लिए देशभर में नया वातावरण बन रहा है और जनापेक्षाएं अब केवल घोषणाओं और आश्वासनों से पूरी नहीं होती। एक नई चेतना का संचार हुआ है जो दीर्घकालिक प्रभाव डालने की क्षमता भी रखती है। इसके तहत विभिन्न प्रकार के प्रमाणपत्र और अन्य दस्तावेज तैयार करने के लिए एक समयसीमा बांधी गई है जिससे बंधना विभिन्न विभागों का दायित्व बन जाएगा। नालागढ़ और रेणुका जी में जारी उपचुनाव आचार संहिता के समाप्त होते ही अधिसूचना लागू हो जाएगी। कोई कुछ भी कहे, इससे कार्यसंस्कृति में अंतर आएगा। यूं कहें कि कार्यसंस्कृति आएगी। इसका लाभ सरकार को भी मिलेगा। अब भी कई विभाग और अधिकारी ऐसे हैं जिनमें काम के लिए जाने वाले व्यक्ति को यह भरोसा नहीं होता कि उसका काम तय सीमा में हो ही जाएगा। विलंब का कारण बनने वाली उदासीनता किसी एक अधिकारी या कर्मचारी के स्तर पर होती है लेकिन कसौटी पर सरकार और प्रदेश के नीति नियंता होते हैं। सदिच्छाओं के बावजूद किसी एक कार्यालय से खफा जनता पूरे शासन के लिए प्रमाणपत्र बांट देती है। जनता अपने स्थान पर इसलिए ठीक है क्योंकि उसके साथ तो वादा त्वरित और तत्काल सेवा का हुआ होता है। इस पक्ष को आसान करने के लिए सूचना और तकनीकी का विकास भी साथ निभाने को तत्पर दिखता है। सवाल यह है कि कि मंत्रिमंडल ने तो एक व्यवस्था कर दी है लेकिन अब इन नियमों का पालन करना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इसमें जनता की भागीदारी भी अपेक्षित है। अधिकार मिला है तो उसका प्रयोग भी राज्य की बेहतरी के लिए होना चाहिए। जो कर्मचारी या अधिकारी नियम का पालन नहीं करता उसके बारे में मौन न साधा जाए। सरकार भी यह सुनिश्चित करे संबंधित विभागों में मानव संसाधन की कमी न हो ताकि नियम का सम्मान हो सके।